बिहार में चुनावी बहार
चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दो दशक में पहली बार इतनी कम अवधि तथा दो चरणों में मतदान छह व ग्यारह नवंबर को होगा और मतगणना चौदह नवंबर को होगी। विवादों के केंद्र में रही चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पर विपक्ष की राजनीति राजग गठबंधन को चुनौती देगी।
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Sanjay Purohit
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चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। दो दशक में पहली बार इतनी कम अवधि तथा दो चरणों में मतदान छह व ग्यारह नवंबर को होगा और मतगणना चौदह नवंबर को होगी। विवादों के केंद्र में रही चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पर विपक्ष की राजनीति राजग गठबंधन को चुनौती देगी। एक घटक, जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। जो पलायन व भ्रष्टाचार के मुद्दे को पार्टी का लक्ष्य बता रहे हैं। बहरहाल, लोकसभा चुनाव सात चरण में कराने के खट्टे अनुभवों से सबक लेकर चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों की मांग पर विधानसभा चुनाव दो चरणों में समेटने का निर्णय लिया है। लेकिन यह तय है कि जिस तरह आनन-फानन में पर्याप्त तैयारियों की कमी के बीच एसआईआर को अंजाम दिया गया, उसको लेकर तमाम तरह के सवाल उभरते ही रहेंगे। यहां तक कि मामले में बार-बार शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा। अभी आयोग को उन लोगों की शिकायत का सामना करना पड़ेगा, जो वोटर लिस्ट में अपना नाम नहीं देख पा रहे हैं। बहरहाल, एक बात तो तय है कि दो दशक से बिहार की राजनीति के केंद्र में बने हुए नीतीश कुमार को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि राजग नेतृत्व को उम्मीद है कि हाल के दिनों में कराए गए विकास कार्य तथा लोकलुभावनी योजनाओं की बरसात से वोटों की फसल सींची जा सकेगी। ये आने वाला वक्त बताएगा कि बिहार का जनमानस नीतीश को फिर से गद्दी सौंपता है या फिर उत्साहित महागठबंधन को सत्ता में आने का मौका देता है। कांग्रेस व राजद का कई मतभेदों के बावजूद एकजुट रहना सुशासन बाबू के लिये मुश्किलें जरूर पैदा कर सकता है। इन चुनावों में मोदी-शाह की प्रतिष्ठा का भी मूल्यांकन होगा। नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा भी इन चुनावों में दांव पर लगी है कि क्या वे दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले पाएंगे।

बहरहाल, इस बार सुशासन बाबू की प्रतिष्ठा भी दांव पर है, जब विपक्ष ने भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के सवाल को बड़ा मसला बना दिया है। जिस मुद्दे पर नीतीश अब तक राजद सरकार को जंगल राज बताकर घेरते रहे हैं, वही अस्त्र अब महागठबंधन की ओर से चलाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष एसआईआर विवादों के आलोक में मतदाताओं में असमंजस की बात कह रहा है। उसकी दलील है कि अब जब चुनाव में कुछ ही हफ्ते बाकी हैं विशेष गहन पुनरीक्षण अभी भी न्यायिक जांच के दायरे में है। दरअसल, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से अंतिम मतदाता सूची से बाहर किए गए 3.66 लाख मतदाताओं का विवरण उपलब्ध कराने को कहा है। दरअसल, 24 जून को चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर अभियान शुरू करने के बाद मतदाताओं की संख्या में खासा फेरबदल होता रहा है। अभियान शुरू करते वक्त बिहार में मतदाताओं की संख्या 7.9 करोड़ थी, फिर एक अगस्त को जारी मसौदा सूची में यह संख्या घटकर 7.24 करोड़ रह गई। मृत्यु,प्रवास और दोहराव सहित विभिन्न आधारों पर 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए थे। अब अंतिम सूची में 7.42 करोड़ मतदाता हैं। मसौदा सूची में 21.53 लाख नाम जोड़े गए हैं और कुल 3.66 लाख नाम हटा दिए गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों की दुविधा दूर करने के लिये चुनाव आयोग से कुछ सवालों का जवाब तुरंत देने को कहा है। निस्संदेह, न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण, एसआईआर में कुछ हद तक पारदर्शिता देखी गई है। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग को उन अवैध प्रवासियों की संख्या साझा करने की जरूरत है, जिनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि अखिल भारतीय एसआईआर शुरू करने से पहले बिहार से सबक लेकर सामने आई कमियों को दूर करने की दिशा में चुनाव आयोग पहल करेगा। अब ये आने वाला वक्त बताएगा कि महिलाओं, दिव्यांगों व बुजुर्गों के लिये बड़े पैमाने पर की गयी घोषणाओं का कितना लाभ सुशासन बाबू को मिलता है।

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